गहलौर के रहने वाले दशरथ मांझी, एक ऐसा नाम जो इंसानी जज़्बे और जुनून की मिसाल है. वो दीवानगी, जो प्रेम की खातिर ज़िद में बदली और तब तक चैन से नहीं बैठी, जब तक कि पहाड़ का सीना चीर दिया। अपने प्यार के दम पर हीं वो बाईस साल तक अकेले पहाड को काटता रहा और बना दिया आम लोगों की खातिर एक सुगम रास्ता। जिसे लोग आज प्रेम से दशरथ बाबा कह कर याद करते हैं।